भानगढ़ का किला
भानगढ़ का किला- राजस्थान में १७वीं शताब्दी में इस भानगढ़ किले का निर्माण किया गया था। यह किला चारों तरफ से ऊँचे -ऊँचे पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है। यह किला राजस्थान बने सभी किलों में से सबसे ज्यादा देखे जाने वाला किला माना जाता है। जबकि यह किला पूरी तरह से एक खंडर हुआ पड़ा है। इस किले के बारे कुछ भूतिया कहानी सुनाई जाती है, और उन कहानियों के अनुसार हमें यह पता चलता है की ये किला एक ही रात में खण्डार में बदल गया था। इस किले के अन्दर रहने वाले सारे लोग अचानक से एक ही रात में कंही गायब हो गए। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम ने इस किले हो भारत के सबसे भूतिया किलों में से एक बताया है, और इस किले के अन्दर सूर्य निकलने से पहले, और सूर्य ढलने के बाद जाना मना है।
इस किले में बहुत सी ऐसी चीजें है, जो इस किले को भूतिया बताती है, जैसे, इस किले की सभी दीवारें पूरी तरह से टूट गई है, कुछ ही ईमारत है जो अभी ही बची हुई है। लेकिन देखने लायक सभी ईमारत टूट गई है। किले की टूटी हुई सभी इमारतों का मलवा अभी भी वंही पर पड़ा हुआ है। भानगढ के इस विशाल किले में सभी इमारते टूटी है। जबकि किले में बने हुए, १७वीं शताब्दी के मंदिर आज भी सुरक्षित है।
भानगढ़ किले का निर्माण- भानगढ़ किले का निर्माण १७वीं शताब्दी में मान सिंह प्रथम ने अपने छोटे बेटे माधो सिंह प्रथम के लिए बनवाया था। इस किले की बनावट बहुत ही अद्भुत है, यह किला एक पर्वत पर है, और इस किले के चारो तरफ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ है। जिसके कारण यह किला चारों तरफ से दुस्मनों के आक्रमण से सुरक्षित है। इस किले में प्राचीन मंदिर है। जो १७वीं शताब्दी के बने हुए, और आज भी सुरक्षित है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्य दीवार है। इस किले को बनाने के लिए, मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये हैं। इस किले में बहुत से राजाओं ने राज किया। इस किले में एक लम्बे समय तक खुशियाँ मनाई गई, और फिर एक दिन, एक ही रात में सब कुछ बदल गया।
राजकुमारी रत्नावती- राजकुमारी रत्नावती बहुत ही खूबसूरत थी, राजकुमारी रत्नावती की खूबसूरती के चर्चे पुरे भारत में होते थे। दूर -दूर से लोग राजकुमारी रत्नावती की सुन्दरता को देखने के लिए आते थे। जिसके कारण राजकुमारी रत्नावती से शादी करने के लिए पुरे भारत से लोग आते थे। एक दिन राजकुमारी रत्नावती अपनी एक दासी के साथ बाजार में घूम रही थी। उसी बाजार में एक जादूगर भी घूम रहा था, और उसका नाम सिंघिया था। सिंघिया ने काले जादू में महारथ हासिल कर ली थी।
काफी देर तक बाजार में घूमने के बाद राजकुमारी रत्नावती को एक बहुत ही सुन्दर इत्रों की एक दुकान दिखाई दी। राजकुमारी रत्नावती अपनी दासी के साथ उस दुकान पर गई , और इत्रों को खरीदने लगी। इत्र की महक का जायजा लेने के लिए, राजकुमारी रत्नावती ने इत्र की एक बोतल को खोला और इत्र की महक का जायजा लेने लगी। तभी अचानक से उसी समय जादूगर सिंघिया इत्र वाली दुकान के पास से गुजार रहा था। की तभी उसके इत्र की महक आई, और वो उसी समय वंही पर रूक गया।
जैसे ही जादूगर सिंघिया ने इत्र की महक सुंगी, तो उसने देखा की बगल वाली इत्र की दुकान पर दो लड़कियाँ खड़ी है। जिनमें से एक लड़की ने इत्र की बोतल को खोलकर उसकी महक जायजा ले रही है। जादूगर सिंघिया उस लड़की के पास गया। जैसी ही जादूगर सिंघिया ने राजकुमारी रत्नावती देखा तो, जादूगर सिंघिया को राजकुमारी रत्नावती की खूबसूरती से प्यार हो गया। राजकुमारी रत्नावती इत्रों वाली दुकान से इत्र ख़रीदे, और फिर वापस अपनी दासी के साथ किले की और जाने लगी। राजकुमारी रत्नावती को जाता देखकर जादूगर सिंघिया ने राजकुमारी रत्नावती का पीछा किया। कुछ देर तक पीछा करने के बाद, जादूगर सिंघिया ने देखा की वो दोनों लड़कियाँ किले के अन्दर जा रही है। जादूगर सिंघिया ने भी किले के अन्दर जाने की सोची लेकिन किले के दरवाजे पर खड़े सैनिकों ने जादूगर सिंघिया को बाहर ही रोक दिया। जादूगर सिंघिया पागलो की तरह मन ही मन राजकुमारी से प्रेम करने लगा था। वो हर हालत में राजकुमारी को पाना चाहता था ।
जादूगर सिंघिया ने राजकुमारी रत्नावती को प्राप्त करने के लिए, बहुत से उपाए अपनाए। लेकिन जादूगर सिंघिया कामयाब ना हो सका। लेकिन उसे एक बात पता चली, जो उसे पहले नहीं पता थी। जिस लड़की को प्राप्त की कोशिश वो कर रहा है। वो लड़की उस राज्य की राजकुमारी है, जिस राज्य में जादूगर सिंघिया रहता है। जैसे ही जादूगर सिंघिया को यह पता चला, तो जादूगर सिंघिया समझ गया की, उसकी इस हरकत का नतीजा की मोत होगा। लेकिन जादूगर सिंघिया राजकुमारी रत्नावती के प्रेम में इतना पागल हो गया था। की उसको अपनी मोत का भी डर नहीं लगा।
जादूगर सिंधिया कोई रास्ता ही सोच था की, तभी अचानक से जादूगर सिंधिया ने राजकुमारी रत्नावती की उस दासी को देखा, जिसके साथ राजकुमारी रत्नावती इत्र खरीदने बाजारआई थी। राजकुमारी रत्नावती की दासी को बाजार में देखकर, जादूगर सिंधिया को एक रास्ता दिखाई दिया। जादूगर सिंधिया उस दासी के पास गया, और दासी पर काला जादू करके उसे अपने वश में कर लिया।
इत्र की शीशी पर काला जादू
जादूगर सिंधिया ने अपनी एक छोटी सी कुटिया भानगढ़ के किले दाये ओर वाले ऊँचे पहाड़ पर बना रखी थी। जादूगर सिंधिया अपनी इस छोटी सी कुटिया में अपने काले जादू की तंत्र-मंत्र का अभ्यास करता था। एक दिन जादूगर सिंधिया बाजार में उसी दुकान पर गया, जहाँ से राजकुमारी रत्नावती ने अपने लिए इत्र ख़रीदा था। जादूगर सिंधिया ने उस इत्र वाली दुकान से वैसा ही इत्र ख़रीदा, जैसा राजकुमारी रत्नावती ने अपने लिए ख़रीदा था।
इत्र खरीदने के बाद जादूगर सिंधिया ने उस इत्र पर एक बहुत ही खतरनाक काला जादू किया, इस काले जादू की मदद से जादूगर सिंधिया राजकुमारी रत्नावती को प्राप्त कर सकता था। इत्र की शीशी पर जादू करने के बाद, जादूगर सिंधिया को इस शीशी को राजकुमारी रत्नावती देना था। लेकिन कैसे?
राजकुमारी रत्नावती की दासी को वश में करते ही, जादूगर सिंघिया ने दासी को इत्र की शीशी दी, और कहा, " यह इत्र राजकुमारी रत्नावती को दे दो। दासी ने उस इत्र की शीशी को ले जाकर राजकुमारी रत्नावती के कमरे में रख दी। थोड़ी देर बाद राजकुमारी रत्नावती अपने कमरे में आई, और अपना शृंगार करने लगी। तभी अचानक से राजकुमारी रत्नावती की नज़र इत्र की शीशी पर पड़ी। राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र की शीशी को उठाया। जैसे ही राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र वाली शीशी को खोलने की सोची तभी राजकुमारी रत्नावती को उस इत्र की शीशी पर हुए काले जादू के बारे में पता चल गया। राजकुमारी रत्नावती को काले जादू का अच्छा ज्ञान था।
इत्र की शीशी पर हुए काले जादू का पता चलते ही राजकुमारी रत्नावती ने अपने कमरे की खिड़की से उस इत्र की शीशी को बाहर फेक दिया। इत्र की शीशी जाकर एक बहुत बड़े पत्थर से जा टकराई, और टूट गई। जिसके कारण सारा इत्र उस पत्थर पर फैल गया। जिसके कारण वो पत्थर लुड़कने लगा, और जादूगर सिंघिया की ओर बढ़ने लगा।
सभी बातों से अनजान, जादूगर सिंघिया राजकुमारी रत्नावती के किले से दूर एक सुनसान जगह पर बैठा राजकुमारी रत्नावती के आने का इंतजार कर रहा था। तभी अचानक से उसे अपनी ओर आता एक बड़ा सा पत्थर दिखाई दिया। अपनी ओर आते हुए बड़े से पत्थर को देखकर, जादूगर सिंघिया भागने के लिए तैयार हो गया। लेकिन जादूगर सिंघिया ज्यादा दूर नहीं भाग सका। और पत्थर के नीचे दबकर मर गया।
लेकिन मरने से पहले जादूगर सिंघिया ये जान गया था की , इस पत्थर पर किसी ने जादू किया है। जादूगर सिंघिया मंत्र से अपनी जान बचा सकता था। लेकिन जादूगर सिंघिया के पास इतना समय नहीं था। इसलिए उसने अपनी सारी काले जादू की शक्ति को एकतित्र किया। और पुरे भानगढ़ को एक शाप दिया। कि आज के बाद भानगढ़ टूट फुट कर ढेर हो जायेगा, और ये वापस कभी बस नहीं पाएगा। सिर्फ मंदिरों को छोड़कर, भानगढ़ की सभी इमारतें टूटकर जमीन पर बिखर जाएगी।
कुछ समय बाद राजकुमारी रत्नावती की मौत हो गई। कुछ पुरानी कथाओं के अनुसार ये बताया जाता है की, जादूगर सिंघिया का शाप आज भी भानगढ़ पर है। भानगढ़ किले में एक मंदिर है, जो राजकुमारी रत्नावती के नाम पर है। जहाँ पर आज भी राजकुमारी आती है, और अपना शृंगार करती है।
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