राजस्थान राज्य के रामपुर गांव की बात है। सुबह का समय तकरीबन पांच बजे एक आदमी भागा जा रहा है। बोहत तेजी में घबराहट उसके चेहरे पर साफ़ दिख रही है। और वो भागता -भागता एक घर पे जाके रुकताहै। और जोर से आवाज लगाता है। सरपंच साहिब -साहिब। वो घर किसी और का नहीं बल्कि उस गांव के सरपंच का था। कुछ ही पल में कमरे का दरवाजा खुलता है। जिसके भीतर से एक लम्बा चौड़ा आदमी बाहर आता है। नाम विजेंदर सिंह पेंट शर्ट पहने हुए 43 साल के ये सरपंच सच में बड़े रोबदार थे। और चेहरे पर लम्बी मूछें सरपंच साहिब की शान में चार चांद लगा देती थी। तभी दरवाजे पर खड़ा वो वयक्ति चिल्लाता है। सरपंच साहिब जल्दी कीजिये पड़ोस के गांव वाले जमींदार नदी का पानी अपनी तरफ मोड़ रहे है। हमारी फसलें सूखी रह जायेगी कुछ कीजिये मालिक। सरपंच विजेन्दर सिंह भागा-भागा नदी पे जाता है। और वहाँ चल रहे इस गैर क़ानूनी काम को रुकवाने के लिए पुलिस को बुलाता है। इस तरह वो गाँव का पानी बचा लेते है। जिसका फायदा पूरे गांव को होता है। और पूरा गाँव उसकी बहादुरी पर गर्व महसूस करता है। सब लोग सरपंच साहिब को बधाई देते है। एक वृद्ध महिला आप तो भगवान् हो हमारे लिए सरपंच साहिब नहीं माता जी अभी तो मेने कुछ काम नही किआ है। अभी तो गांव के लड़कों के लिए क्रिकेट और कब्बडी का ग्राउंड बनवाना है। उसके लिए सरकारी जमीन की जरूरत है। वो पास कराने दिल्ली जाना है। सरपंच साहिब के नाम के जयकारे गांव में गूंजने लगते है। और कुछ देर बाद जब सरपंच घर वापिस आ जाते है। दरवाजे से घर में प्रवेश करते ही सरपंच साहिब का बेटा उस से चिपक के कहता है कि पापा आप तो शेर हो आप तो किसी से नहीं डरते। इतने में ही विजेंदर की माँ आ जाती है। ‘’किसने कहा था तुझे वहाँ अकेले जाने को अगर कुछ कर देते वो तुझे तो, तुजे हमारा बिल्कुल भी ख्याल नहीं’’ एक माँ की फ़िक्र उसमे साफ़ दिख रही थी। अब विजेन्दर अपनी माँ को गले लगाकर उन्हें समझाता है, की उसे कुछ नहीं होगा सब ठीक है। तभी उधर से आवाज आती है। ‘’शेर का शिकार कभी कुते नहीं किआ करते’’ अपना वीजू शेर है, शेर तू फिकर ना कर’’ ये बहादुरी के शब्द विजेन्दर के पिता जी के थे। दिखने में किसी पहलवान से कम नही, तभी तो विजेन्दर भी उनकी तरह ही दीखता था। इसमें कोई दोहराई नहीं थी। कि विजेंदर का हौंसला बढ़ाने में उनका बोहत बड़ा हाथ था। और पुरे गाँव में उनकी चलती थी। और चले भी क्यों ना गाँव के पुराने सरपंच वही थे। मुछो को ताव देते हुए विजेंदर से पूछते है। अब दिल्ली में मोर्चा कब मारना है। ये सुनते ही विजेन्दर की धर्मपत्नी रसोई से बहार आ जाती है। एक सीधी साधी घरेलू महिला जिसको सिर्फ खाना बनाने और घर के कामों में व्यस्त रखा जाता था। वैसे भी भारत की अधिकतर महिलाओं की यही स्थिति है। विजेन्दर अपने पिता से कहता है, की वो कल जायेगा। इसी बात को लेके सरपंच की माँ बोलती है, विजेन्दर तू क्या फिर इतने दिन होटल में रहेगा। (क्यूंकि जिस काम के लिए विजेन्दर दिली जा रहा था। उस काम का पूरा होने में कम से कम 4 दिन तो लगने ही थे। तो इतने में विजेंदर के पिता बोलते है। अरे भाई अपना विजु होटल में क्यों रहेगा वो अपने फैमिली डॉक्टर धानीराम के पास रहेगा उनका घर भी दिल्ली में उसी जगह के पास है। विजेंदर और उसकी धर्मपत्नी एक दूसरे को देखते है। कुछ देर बाद सब लोग खाना खाके सो जाते है। विजेंदर की धर्मपत्नी रात को सो नहीं पाती उसे अजीब सी घबराहट होती है। अगली सुबह विजेन्दर घर वालों से मिलकर घर से निकलने लगता है। तो बाहर निकलते ही देखता है। की पूरा गांव उसे सुभकामनाये देने आया है। क्यूंकि वो एक नेक काम करने जा रहा होता है। सबकी शुभकामना स्वीकार करके दिल्ली के लिए रवाना हो पड़ता है। कुछ घंटों का सफर तय करके विजेन्दर दिल्ली पहूंचता है। यहाँ की भीड़ और ट्रैफिक से बचते बचाते वो अपने फैमिली डॉक्टर धनीराम जी के घर पहुँचता है। डॉक्टर का घर देख कर सरपंच साहिब अचंभित रह जाते है। क्यूंकि दिल्ली जैसे शहर में इतना बड़ा घर बनाने के लिए बहुत पैसो की जरूरत होती है। देख कर ही लगता था की डॉक्टर साहिब ने अपनी जिंदगी में बहुत पैसे कमाए है। सरपंच साहब ने गेटकीपर को अपना परिचय दिया और उसके बाद घर का नौकर बिरजु सरपंच साहब को घर के भीतर ले जाता है। बिरजू उन्हें रेस्ट हाउस में आराम करने को कहता है। क्यूंकि डॉक्टर साहिब किसी जरूरी ऑपरेशन के चलते शहर से बाहर गए हुए थे। विजेंदर को पेट भरके अच्छा भोजन खिलाया गया। और कुछ देर आराम करके विजेन्दर मंत्री साहब के सेक्रेटरी से मिलने की कोशिश में चल पड़ा। शाम ढल चुकी थी। विजेन्दर थका हरा वापिस आता है। उसका चेहरा साफ़ बता रहा था। की वो सेक्रेटरी को नहीं मिल पाया। वो सोने के लिए अपने रेस्ट हाउस में चला जाता है। तभी उसके रूम का दरवाजा खटकता है।
विजेंदर - कौन है ?
बिरजू हुँ साहिब, खाना लाया हुँ।
विजेंदर - मुझे भूख नहीं है तुम जाओ।
बिरजू चला जाता है। तभी फिर से दरवजा खटकता है।
विजेंदर ‘’अब कौन आ गया’’ कौन है ?
बिरजू - साहिब हम है। आप थोड़ा कुछ तो खा लीजिए ऐसे भूखे सोयेगे अच्छा नहीं लगेगा ।
विजेंदर - मुझे खाने की नहीं आराम की जरूरत है। बिरजु तुम जाओ।
एक बार फिर रूम का दरवाजा खटकता है।
विजेंदर गुसे में मेने बोला ना एक बार मुझे खाना नहीं खाना तुम्हे समझ नहीं आता।
‘’खाना नहीं खाना होता तो बता दिया करते है पहले ही। कम से कम इतना खाना वेस्ट तो ना होता । इतने बड़े हो गये हो। इतना तो पता होना चाहिए आपको’’। ये आवाज एक बच्ची की लग रही थी। जैसे ही विजेन्दर उठके दवाजा खोलता है ।
तो एक छोटी सी लड़की जिसकी उम्र लगभग 7 साल होगी, वो खड़ी होती है । बड़ी बड़ी आँखे करके जैसे की वो आज सरपंच साहब को खुभ डाट लगाने आई हो। चेहरे पे मासूमियत और बनावटी सा गुसा वो बच्ची दिखने में खूबसूरत थी। ‘’तुम कौन हो ?’’ विजेंदर के ये पूछने पे लड़की जवाब देती है ''उम्र 7 साल नाम मालूम नहीं और काम आप जैसों को ठीक करना” बच्ची की बातों से स्पष्ट जाहिर था। कि वो अभी भी गुसा है। तो विजेन्दर निचे बैठ कर कान पकड़ कर उस से माफ़ी मांगता है। और कहता है, की में खाना खा लुंगा। आप ले आओ। ये सुनते ही बची खुश हो गयी। और भागी भागी गयी और कुछ देर में खाना ले आई। और फिर विजेंदर ने खाना खाया। विजेंदर पूछता है। कि क्या तुम बिरजू की बेटी हो ? तो बच्ची कहती है। नहीं बाबा मेरे माँ बाप कि पास शायद पैसे नहीँ थे। मुझे पालने के लिए, इसलिए उन्होंने मुझे डॉक्टर साहिब को दे दिआ। अब में यही रहती हूँ। काम में हाथ बटा देती हूँ। ये बोलते हुए बच्ची के चेहरे पे कोई भाव नहीं था। और आप डॉक्टर साहब को मत बताना की में यहाँ आई थी। वो मुझे डाँटेगे मुझे डर लगता है उनसे। इसीलिए में घर में ही रहती हूँ। विजेंदर वादा करता है। की वो नहीं बतायेगा। बची झूठे बर्तन उठाकर घर में चली जाती है।
विजेंदर फिर अगली सुबह सेक्रेटरी साहब को मिलने निकल । इस बार और कोशिश करता है। ऑफिस के बाहर बैठा रहता है। शाम हो जाती है। पर कोई फायदा नहीं घर वापिस आता है। और देखता है की बची पहले से ही उसके बिस्तर पे सो रही होती है। ‘’आप यहाँ क्यों सो रहे हो’’ आवाज सुनते ही बच्ची जाग जाती है आप आ गये "वो डॉक्टर साहब ने आज फिर से शराब जयदा पी ली है। और वो सबको गालिया निकाल रहे है। तो मैं यहाँ आकर सो गई। आपको कोई परेशानी तो नहीं अगर में यहाँ सो जाऊ ? उस मासूम बच्ची को भला कौन मना कर सकता था। विजेन्दर वहीं पर सो गया और बच्ची भी उसके हाथ से लिपट कर सो गयी। मानो वो ऐसे कभी न सोई हो। जैसे ही विजेंदर सुबह उठता है। तो बची उसके पैरो के पास बैठी उसका पर्स चेक कर रही होती है। विजेंदर – ‘’क्या तुम्हे पैसे चाहिए’’ ?
बच्ची - नहीं अंकल जी में तो ये फोटो देख रही थी। कौन कौन है इस फोटो मे” ?
विजेन्दर - ये मेरी धर्मपत्नी, और ये मेरा बेटा है। आपसे 2 साल छोटा होगा।
बच्ची - अंकल जी आपका काम हुआ या नहीं ?
विजेन्दर - एक लम्बी सांस लेके अपना सर हिला देते है।
बच्ची - आप कोशिश कीजिये। में प्राथना करुँगी, कि आपका काम पूरा हो जाए।
विजेंदर फिर से निकल पड़ता है मंत्री जी से मिलने के लिए बच्ची की प्राथना लगता है। भगवान् ने सुन ली थी। आज तो सीधा मंत्री जी से मिला, और काम भी पूरा हो गया ख़ुशी ख़ुशी विजेन्दर गेस्ट हाउस वापिस आता है।
बच्ची डॉक्टर साहिब के इंस्ट्रूमेंट से खेल रही होती है। दिखने में इन्डट्रमेंट किसी कैंची की तरह लगता है। तो विजेन्दर कहता है ‘’बेटा छोड़ो इसे आपको लग जाएगी’’। अंकल जी ये तो मेरी ही है।
बच्ची – खैर छोड़ो अंकल जी आपको को मुबारक हो आपका काम हो गया।
विजेन्दर - आपको कैसे पता ? कि काम हो गया ।
बच्ची – आपके चेहरे की ख़ुशी बता रही है।
विजेन्दर - अरे तुम ये मिठाई खाओ। में ये खबर डॉक्टर साहिब को सुनाकर आता हूँ।
विजेन्दर भागा - 2 घर के भीतर जाता है।
विजेन्दर - डॉक्टर साहब कहाँ हो ? आप जल्दी बाहर आइये।
डॉक्टर - अरे विजेन्दर क्या हुआ सब ठीक तो है? किसी तरह की परेशानी तो नहीं यहाँ ?
विजेन्दर - सब ठीक है। डॉक्टर साहब मैं जिस काम के लिए यहाँ आया था, वो हो गया है। ये लीजिये मिठाई खाइए।
डॉक्टर - बधाई हो विजेन्दर बहुत बढ़िया मुझे पता ही था। की तुम ये कर लोगे।
विजेन्दर - ये तो डॉक्टर साहब उस बच्ची की प्राथना का नतीजा ह। कि भगवान् ने ये काम जल्दी करवा दिया।
डॉक्टर - बच्ची कोनसी बच्ची ?
विजेन्दर - वही बच्ची जिसको आपने यहाँ पला है। आपके घर में रहती है जो।
डॉक्टर - अरे भाई कोनसी बच्ची की बात कर रहे हो ? मैने बच्ची पाल ली और मुझे पता भी नहीं….हा हा हा हा
विजेन्दर - पर में तो उसको मिला।
डॉक्टर – “अरे भाई पता नहीं तुम किससे मिल आये। पर इस घर में कोई बच्ची नहीं रहती। में बच्चों का डॉक्टर हूँ। बच्चो को पालने में नहीं” ये बोलकर डॉक्टर साहब अंदर चले जाते है।विजेंदर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो जानना चाहता था कि बच्ची झूठ बोल रही है। या डॉक्टर साहब। वो भागा भागा अपने कमरे की तरफ जाता है। और कमरे पर पहुंच कर दरवाजा खोलता है। तो कमरे में अँधेरा था। रात का समय पूरे घर की लाइट चली गयी थी। कमरे में कुछ भी नहीं दिख रहा होता। वो अपने मोबाइल की रौशनी करता है। तो एका एक उसकी आँखों के आगे वो बच्ची खड़ी होती है। बड़ी बड़ी आँखों के साथ विजेंदर डर जाता वो पीछे हट जाता है। और बच्ची को ध्यान से देखता है। तो बच्ची बिलकुल चुप चाप खड़ी होती है। बच्ची के हाथों और पैरों पर खून लगा होता है। शीशे में से बच्ची की कोई परछाई नहीं दिख रही होती। विजेन्दर समझ जाता है। की ये कोई भूत प्रेत है। विजेंदर डर जाता। और भागने लगता है। पर कमरे का दरवाजा अपने आप लॉक हो चुका है। विजेंदर के माथे से पसीने ही पसीने छूटने लगते है। वो बड़बड़ाने लगता है। की मुझे मत मारना मुझे मत मारना मेरा एक बेटा भी है। आपके जैसा ये सुनकर बच्ची हसने लगती है। और विजेन्दर की और बढ़ती है विजेन्दर इस क्षण को अपने जीवन के आखिरी क्षण मान चूका होता है। और अपनी मौत का इंतज़ार करने लगता है। तभी बच्ची के दोनों हाथ विजेन्दर के सिर को छूते है। और उसका सिर दबाने लग जाते है। विजेन्दर कुछ समझ नहीं पा रहा था। विजेन्दर फिर से डर के मारे बड़बड़ाता है। और कहता है। की में आपका क्या बिगाड़ा है। मुझे छोड़ दो। इस बार वो बोलती है "आपने ही तो सब कुछ बिगाड़ा है पापा" ये शब्द सुन कर विजेन्दर के रोंगटे खड़े हो जाते है। मानो उसके शरीर में से प्राण ही न बचे हो। विजेन्दर सदमे में चला जाता है। और उसे याद आता आज से 7 साल पहले का समय जब उसकी वाइफ प्रेग्नेंट होती है। और वो उसको हॉस्पिटल लेके जाते है। हॉस्पिटल में वो ये चेक करने आते है। की लड़का होगा या लड़की डॉक्टर बाहर आके बताता है। की लड़की है पेट में। सरपंच साहब की फॅमिली को तो लड़का चाहिए था। तो उसकी माँ और उसका पिता डॉक्टर को बोल देते है। की हमे ये लड़की नहीं चाहिए। आप इसको पैदा ही मत होने दो । और विजेन्दर वही खड़ा होता है । और वो अपने पिता को नहीं रोक पाता। कुछ समय बाद डॉक्टर आता है। और बताता है। कि एबॉर्शन हो चुका है। पर हमे बच्ची के बॉडी पार्ट्स काटकर निकालने पड़े है। क्युकी बच्ची की बॉडी बढ़ चुकी थी। डॉक्टर वही थे धानीराम उनके हाथ में वही कैंची थी। जिस से बच्ची को काट कर निकाला गया था। तभी विजेंदर को होश आती है। और वो बच्ची वही बैठी थी। उसके सामने और पूछती है क्यों पापा मेरा क्या कसूर था। आपने भी किसी को मनाने की कोशिश नहीं की मुझे मारने में सबका बराबर का हाथ था। विजेन्दर फूट फूट कर रो पड़ता है। तो बच्ची कहती है। की मेने तो रोना सिखा ही नहीं मुझे तो रोना सीखने से पहले ही अपने मार दिया। विजेंदर को समझ आ चूका था। की उसने वो पाप कर दिआ है। जिसकी उसे कभी माफ़ी भी नहीं मिल सकती। अपने हाथ बच्ची की तरफ जोड़कर फूट फूट कर रोता है। तभी दरवाजा खुल जाता है। और बच्ची नन्हे नन्हे कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ती है। विजेंदर बच्ची को रोकता है। रुक जाओ बेटा रुक जाओ, मुझे मार डालो में पापी हूँ। तुम वापिस आ जाओ मेरी जिंदगी में वापिस आ जाओ। ये बात सुनकर बच्ची रुक जाती है। और वहां पड़े टेबल के ऊपर कुछ पेपर देखती है। और मुड़कर अपने पापा को कहती है। की क्या गर्रंटी है, इस बात की , की अगर मैं वापस आ जाऊ तो मुझे जीने दिया जायेगा ? ये बोलकर बच्ची दरवाजे से ओझल हो जाती है। विजेन्दर पीछे पीछे भागता है। पर उसे वो पाक रूह अब कभी नहीं दिखेगी। विजेंदर दिल्ली आया तो जीतने था। पर उसकी ये जिंदगी की सबसे बड़ी हार थी। पर उसके मन में बात रह जाती है। कि बच्ची जाते जाते टेबल को देखके वो बात क्यों कही तो वो टेबल की तरफ बढ़ता है। टेबल पर एक अखबार पड़ा था। जिसपर ‘’असिफा बानो’’ एक 8 साल की लड़की के गैंगरेप की स्टोरी छपी थी। विजेंदर अब पछताने के सिवा और कुछ भी नहीं कर सकता था।
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