4 भूत कि कहानी ज़रूर पढ़े

4 भूत कि कहानी ज़रूर पढ़े 


आज हम पढ़ेंगे भूत की कहानी जिसमे आपको बहुत मजा आएगा | यह भूत की डरावनी नहीं बल्कि साहस से भरी है | आपको हर कहानी से कुछ न कुछ बेहतरीन सीखने को मिलेगा | Bhoot ki kahani in hindi with moral values which in end will give you confidence and will also increase your courage too.

So go ahead and read these stories in hindi.

 



1. भाग्य वाले का भूत हल जोतता है


गांव से दूर एक मोहन पहलवान रहता था। उसके पास पचास से अधिक भैंस थी। वह पूरे दिन भैंसों की देख-रेख करता और उससे प्राप्त दूध को पिया करता था। उस पहलवान की यही दिनचर्या थी। वह दूध पी – पी कर इतना बलशाली हो गया था , कि उसका कोई सानी नहीं था। वह अपने साथ पचास किलो का लोहे का डंडा रखता था। आवश्यकता पड़ने पर उसी डंडे से वह युद्ध किया करता था। कुछ समय से वह उस रास्ते आए – गए लोगों से पूछा करता था , मेरा विवाह किधर होगा ?

मेरा विवाह किधर होगा ?

इस पर लोग उसको कोई उत्तर न दे पाते थे , और वह उन लोगों की पिटाई कर देता था।

एक  दिन की बात है , एक ब्राह्मण और एक नाई ( हजाम ) दूर देश विवाह का रस्म करने उस रास्ते से जा रहे थे। रास्ते में मोहन पहलवान मिल गया, अन्य की भांति वह पहलवान उनसे भी पूछने लगा मेरा विवाह किधर होगा ? दोनों काफी भयभीत स्थिति में थे। वह जानते थे किस जवाब नहीं देने पर यह पहलवान उनकी पिटाई कर देगा। इस पर नाई ने एक युक्ति लगाई और दूर ताड़ का पेड़ दिखा कर कहा तुम्हारा विवाह उधर होगा।  मोहन पहलवान बहुत प्रसन्न हुआ , उसने अपनी पाँचसों  भैंस उन दोनों को सुपुर्द कर दिया।

कहा यह सब तुम लेते जाओ अब मेरे किस काम के ?

अब मैं चला अपने ससुराल खातिरदारी करवाने।

मोहन पहलवान ने क्या किया ?

मोहन पहलवान उस ताड़ के पेड़ को लक्ष्य बनाकर वहां पहुंच गया। वहां एक झोपड़ी थी , उसके अंदर एक महिला और एक बच्चा था। वहां जाकर पहलवान ने  हाजिरी लगाई , उस महिला को समझ नहीं आया कि यह कौन है ? किंतु सोचा कि वह मेरे पति के जानकार होंगे , इसलिए उसको मेहमान के कमरे में बिठा दिया और लोटा बाल्टी हाथ पैर धोने के लिए उसे दिया। महिला का पति जब आता है तो उस आदमी को वहां पाकर अचरज में पड़ जाता है कि यह कौन है ? अपनी पत्नी से पूछता है तो वह कहती है पता नहीं यह कौन है ?  मैं तो सोच रही थी कि यह तुम्हारा कोई परिचित होगा और तुम्हारे जैसा ही यह बदतमीज है मुझे भी एक थप्पड़ मारा है इसने।

लड़का रो रहा था तो यह कहते हुए मारा लड़के को क्यों रुला रही है ?

इतना सुनते ही उसका पति क्रोधित होकर उस आदमी के पास गया और कहने लगा कि तूने मेरी बीवी को कैसे मारा ? कहते हुए उससे झगड़ा शुरू कर दिया। मोहन पहलवान था वह यह बदतमीजी बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसने अपना लोहे का डंडा उठाया और एक सिर पर लगा दिया। वह आदमी वही मर गया। उसकी बीवी कहने लगी कि अब तो मेरे  पति ही एक सहारा थे वह भी मर गए अब तुम्हारे साथ ही आधी जिंदगी निर्वाह होगी।

दोनों घर में रहने लगे छह-सात दिन बीते होंगे घर में जमा राशन पानी खत्म होने लगा।

इस कहानी के बाद दो और कहानियां नीचे लिखी हैं

तब उस महिला ने बोला कि कुछ कमाई करोगे या ऐसे ही भूखे मरेंगे ?  बिना कमाई के जीवन कैसे चलेगा ? मोहन पहलवान भैंसों का दूध पीने के अलावा कुछ कार्य नहीं जानता था।

उसने उस महिला से पूछा कमाई , वह क्या होता है ?

बताओ ?

महिला ने उसे बताया कि राज महल में जाकर राजा से कुछ खेती के लिए जमीन मांग लो.

जिस पर खेती करके अपना अनाज उपजाया करेंगे।

पहलवान अपना डंडा हाथ में लेकर राज महल के तरफ चल पड़ा। राज महल से कुछ दूर रहा होगा कि लोगों ने उसे अपनी ओर आते हुए देखा तो वहां सब डर के मारे थर-थर कांपने लगे। वह यहां आ रहा है एकाध को मार डालेगा , राजा ने अपने मुंशी को तुरंत उसके पास जाकर उसके आने का कारण पूछने के लिए भेजा। मुंशी मोहन पहलवान के पास गया और उसके यहां आने का कारण पूछा। इस पर मोहन ने बताया कि वह खेती के लिए कुछ जमीन राजा से मांगने आया है। मुंशी ने कहा तुम यही ठहरो मैं राजा को बता कर आता हूं।

मुंशी राजा के पास आता है और उसके आने का कारण बताता है।

इस पर राजा मुंशी को आदेश देते हैं , वह जितनी जमीन और जहां मांग रहा है उसे वहां दे दो।

मुंशी तुरंत मोहन पहलवान के पास जाता है और उसे चालाकी से एक जमीन देता है जो श्मशान घाट के पास बंजर पड़ी थी। मोहन पहलवान उस जमीन पर जुताई करने से पूर्व सोचता है कि यह खेत में आ रहा पीपल का पेड़ जिसके कारण हमारी फसल कम हो जाएगी।  इसे अपने खेत से हटा देता हूं , यह सोचकर उसने पीपल के पेड़ पर लोहे का एक डंडा मारा जिसमें से डेढ़ सौ भूत नीचे उतरे और मोहन पहलवान से लड़ाई करने लगे।

मोहन पहलवान उन डेढ़ सौ भूतों का सामना डटकर करने लगा।

किसी भूत का हाथ टूटा , किसी का सर फूटा , किसी का पैर टूटा , सभी लाइन से खड़े हो गए और माफी मांगने लगे। उन्होंने पीपल के पेड़ को हटाने का कारण पूछा। जिस पर पहलवान ने स्पष्ट कहा कि यह मेरे खेत मैं आ रही है , इसलिए मैं इसे यहां से हटा दूंगा।

फिर भूतों ने क्या किया ?

भूतों ने  मोहन को कहा कि हम इस खेत से होने वाली सारी पैदावार के बराबर आपके घर में राशन पहुंचा देंगे , परंतु यह पेड़ आप मत तोड़ो , यह हमारा घर है। और हम यहां कई वर्षों से रह रहे हैं। मोहन पहलवान बलशाली था , और बलशाली लोग सदैव दया करते हैं। इसलिए उसने भूतों की बात मान ली और घर चला गया। अब भूतों ने मोहन पहलवान के घर छः महीने का राशन भंडार कर दिया। मोहन ऐश – मौज  की जिंदगी यापन करने लगा।

भूतों को यह सौदा बहुत महंगा पड़ा , वह कार्य कर करके दुबले हो गए थे।

एक दिन बाद भूतों के गुरु जी वहां पहुंचे और उन्होंने उन सब को दुबला पाकर कारण पूछा तो सभी भूतों ने  बताया की एक पहलवान है , उसकी जी हजूरी करने , उसको राशन पहुंचाने यह सब काम करने में हमारा सारा वक्त चला जाता है , जिसके कारण हम दुबले होते जा रहे हैं। गुरु जी को यह बात बुरी लगी और बदला लेने के लिए वह बिल्ली का वेश बनाकर पहलवान के घर जा पहुंचे। पहलवान के घर रोज बिल्ली दूध पी जाती थी , इस पर वह बहुत परेशान था। आज सबक सिखाने के लिए पहलवान डंडा लेकर दरवाजे की आड़ में खड़ा था। बाहर से बिल्ली के वेश में आए भूतों के गुरु जी ने उस पहलवान को दरवाजे के पीछे छिपा देख लिया था , और दांव लगा रखा था कि कब उसकी आंख से ओझल हो कर उस पर वार किया जाए।

इधर मोहन पहलवान भी दाव लगा रखा था , कि कब बिल्ली घर के अंदर प्रवेश करें और उस पर प्रहार किया जाए। किंतु बिल्ली अंदर नहीं आ रही थी काफी समय हो गया , मोहन धीरे-धीरे पीछे हटता गया और चूल्हे के पास पहुंचकर छुप गया। बिल्ली आई तो उसने मोहन पर अचानक वार करने के लिए जो ही प्रयास किया , मोहन सतर्क की स्थिति में था। उसने एक डंडा बिल्ली के कमर पर लगा दिया।

अब भूतों के गुरु जी के पसीने छूट गए सभी हड्डियां टूट गई।

गुरु जी ने अपने भूत रूप में आकर पहलवान से माफी मांगा , मोहन पहलवान ने उस गुरूजी से पूछा छोड़ने के बदले , आपकी क्या सजा होगी ? गुरु जी ने स्वतः  स्वीकार कर लिया कि जितना राशन आपके घर आता है , उसका दुगना अब दिया जाएगा इस पर मोहन ने गुरुजी को छोड़ दिया। गुरुजी अपने चेलों के घर पहुंचे और पूरा वाकया बताया , अब राशन दुगना पहुंचाना होगा इस पर 

2. भूत का भय 

उत्तराखंड के पीरगढ़ नामक गांव में अब्दुल और उसके साथी रहा करते थे। अब्दुल बेहद ही निडर प्रवृत्ति का व्यक्ति था। अब्दुल अपने साथियों के साथ साहस पूर्ण बातें किया करता था और खेल भी प्रतिस्पर्धा वाला खेला करता था। गांव में कुछ दिनों से भूत के चर्चे चारों ओर हो रहे थे।  गांव के बाहर एक श्मशान घाट था , वहां किसी के देखे जाने की कहानी पूरे गांव में चल रही थी। अब्दुल के साथियों ने एक दिन इस बात पर चर्चा शुरू कर दी , अब्दुल ने बड़े साहस के साथ कहा कि भूत – वूत नहीं होता। यह सब हमारा वहम होता है। इस पर उसके साथियों ने अब्दुल से कहा कि भूत नहीं होता है तो तुम क्या श्मशान घाट जाकर दिखा सकते हो ?

अब्दुल ने कहा क्यों नहीं ! मैं भूत से नहीं डरता।

शर्त हो गई अब्दुल ने तय किया कि , वह रात के अंधेरे में जाकर श्मशान घाट में कील गाड़कर आएगा .

और कील को वह सवेरे सभी को दिखाएगा।

इससे आगे दिल संभालकर पढ़ें

अमावस्या की काली रात थी , इतनी भयंकर काली रात की अपना ही  हाथ नहीं दिख रहा था। अब्दुल अपने दोस्तों के पास से उत्साह में शमशान घाट जाने को निकला। रास्ते में उसे कुछ संकोच और शंका होने लगी , लोगों की कहानियां उसके दिमाग में धीरे – धीरे चलने लगी। उन्होंने श्मशान घाट के पास किसी आत्मा को भटकते हुए देखा था , और न जाने कितनी ही कहानियां अब्दुल के दिमाग में चलने लगी। किंतु वह लौट कर जाता तो सभी उसका मजाक बनाते और उस पर हंसते। अब्दुल अब श्मशान घाट के पास पहुंचने वाला था , कि उसके सामने एक तरफ कुआं है , एक तरफ खाई की स्थिति पैदा हो गई।

लौटकर जाने मे जग हंसाई का भय और श्मशान घाट में भूत का भय।

किंतु निर्भय होकर अब्दुल श्मशान घाट पहुंचा और वहां जमीन पर कील गाड़ कराने की बात थी।

वह नीचे बैठा उसने धीरे – धीरे किल को जमीन में गाड़ना शुरू किया।

किल गाड़ने के लिए वह हथोड़ी लेकर गया था।

किंतु हथौड़ी से आवाज ज्यादा तेज नहीं करना चाह रहा था कि कोई उसकी आवाज सुन ले।

क्या वो कामयाब हुआ

जैसे – तैसे उसने हथौड़ी की सहायता से किल जमीन में गाड़ दी , और कुछ साहसपूर्ण भाव से उठ कर जाने के लिए तैयार हुआ। तभी उसने महसूस किया कि उसके कुर्ते को कोई नीचे खींच रहा है , उसके हाथ – पांव  कांपने लगे और पूरा शरीर ठंडा होने लगा , वह वही मूर्छा खाकर गिर गया। अब्दुल के दोस्त जो उसके पीछे – पीछे छिप कर आए थे , उन लोगों ने देखा और अब्दुल को जल्दी से उठाकर गांव की ओर ले गए , वहां उसके चेहरे पर पानी का छींटा मारा गया काफी समय बाद वह डरते हुए उठा तो उसने पाया कि वह गांव में है। अब्दुल कहने लगा कि मैंने किल को जमीन में गाड़ दिया था , किंतु उठने लगा तो कोई उसके कुर्ते को खींच रहा था।

असली कारण क्या था ?

जिसके कारण वह डर गया था अब्दुल के दोस्तों ने बताया कि कोई उसका कुर्ता  खींच नहीं रहा था , बल्कि उसने खुद ही अपने कुर्ते के ऊपर से किल जमीन में गाड़ा था , जिसके कारण वह खड़ा हुआ तो उसे लगा कि कोई उसका कुर्ता खींच रहा है। इस घटना पर अब्दुल ने सभी लोगों से माफी मांगी , किंतु सभी लोग उसके साहस से प्रसन्न हुए और उसे शाबाशी देते हुए उसके साहस की तारीफ करने लगे।

3. भूत को बनाया बंदी

पितृपक्ष का समय था। एक ब्राह्मण अपने बहू (पत्नी) को विदा कराने अपने ससुराल जा रहे थे। रास्ते में उसे एक व्यक्ति मिलता है और वह पंडित जी से पूछता है , पंडित जी कहां जा रहे हैं ? पंडित जी उस व्यक्ति को बताते हैं कि वह अपनी बहू को विदा कराने ससुराल जा रहे है। इस पर वह व्यक्ति बोलता है अभी तो पितृपक्ष का महीना चल रहा है और इस महीने में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।

वह ब्राह्मण वेवाक होकर बोला , यह सब नियम ब्राह्मणों पर लागू नहीं होता है।

वह आदमी कर भी क्या सकता था चुप रहा।

पंडित जी अपने ससुराल पंहुचते है।

पंडित जी की खातिरदारी उनके ससुराल में खूब होती है।

विदाई के लिए लड़की के घर वाले मना करते हैं कि अभी पित्र पक्ष चल रहा है , ऐसे में कन्या की विदाई नहीं हो सकती।

किंतु पंडित जी अपने हठ  पर रहे।

विदाई आज ही होगी , ससुराल वालों ने कन्या की विदाई कर दी।

पंडित जी कन्या को लेकर अपने घर को निकल जाते हैं।

चलते – चलते उस ब्राह्मण को प्यास लगी। वह एक कुएं के पास रुका और लौटा – डोरी से पानी निकालने लगा।

एक व्यक्ति पुनः ब्राह्मण के पास आता है और पानी पिलाने के लिए आग्रह करता है।

पंडित जी जैसे ही लौटा कुएं में डालते हैं , वह व्यक्ति पंडित जी को उठाकर कुए के अंदर डाल देता है।

वह व्यक्ति पंडित जी का भेष बनाकर कन्या को लेकर पंडित जी के घर निकल पड़ता है।

घर पर कन्या का स्वागत हुआ , दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।

लगभग दो महीने बीत गए होंगे , पंडित जी कुए में ही फंसे हुए थे।

एक दिन कुंए के रास्ते एक व्यापारी गुजर रहा था , उसके बैलों के गले में टंगी हुई घंटी बज रही थी।

घंटी की आवाज सुनकर कुएं से पंडित जी ने आवाज लगाई कि –

” मेरी सहायता की जाए ”

व्यापारी घबरा गया , यह आवाज कुएं में से आ रही है , कोई भूत आवाज तो नहीं दे रहा है ?

इसके बाद क्या हुआ ?

डरते – डरते व्यापारी कुएं के पास गया , उसने बताया कि वह पंडित है किसी ने धोखे से मुझे कुएं में डाल दिया है। व्यापारी की सहायता से पंडित जी बाहर निकलते हैं और वह अपने गांव के लिए रवाना होते हैं। पंडित जी अपने घर पहुंचते हैं तो वहां अपने ही भेष में एक व्यक्ति को पाते हैं , जो उनके पिताजी के साथ कार्य कर रहा था।  सभी गांव के लोग उस बहरूपिये को ही पंडित जी  समझने लगे थे।  इस पर पंडित जी ने अपना परिचय बताया कि मैं आपका बेटा हूं। मगर पंडित जी के पिताजी कैसे मानते दो महीने से वह बहरूपिया उनके बेटे के रूप में उनके साथ रह रहा था और सभी लोग पंडित जी ही समझ रहे थे। अब क्या था दोनों पंडित जी में झगड़ा होना शुरू हुआ कि मैं असली हूं तुम नकली , दूसरा कहे मैं असली हूं तुम नकली।

इसका झगड़ा बढ़ता गया और राजा के समक्ष न्याय के लिए पहुंच गए।

राजा ने कहा ठीक है मैं न्याय करूंगा इसके लिए एक ऊंचा चबूतरा बनाया जाए और राज्य के सभी लोगों को आमंत्रण किया जाए। ऐसा ही हुआ चबूतरा ऊंचा तैयार किया गया और सभी राज्य निवासियों को इस न्याय को देखने के लिए बुलाया गया। राजा अपने तय समय के अनुसार वहां पहुंच गए , उन्होंने एक लोटा भी मंगाया था।

राजा ने दोनों पंडित जी को वहां पुनः पूछा कि असली कौन है ? और नकली कौन ?

किंतु दोनों अपने आपको असली साबित करते रहे

इस पर राजा ने बोला कि जो भी सबसे पहले इस लोटे में घुसकर बाहर निकलेगा मैं , उसको न्याय दूंगा। इस पर एक पंडित जी झट से उस लोटे में घुस गए। बस क्या था राजा ने लोटे का मुंह ऊपर से बंद कर दिया , अब वह अंदर से चिल्लाने लगे कि राजा मुझे क्षमा कर दो ,  अब मैं ऐसी गलती फिर नहीं करूंगा। बस क्या था लोगों को पता चल गया था , असली पंडित जी कौन है। क्योंकि मानव रूप में कोई भी व्यक्ति लोटे के अंदर प्रवेश कैसे कर सकता था ? वह भूत था जो पंडित जी के पितृपक्ष में किए गए कार्य का दंड देने के लिए उनके जीवन में शामिल हुआ था। इसलिए कोई भी शुभ कार्य पित्र पक्ष में नहीं करना चाहिए , ऐसा बुजुर्गों का मानना है।

कुछ समय की बात होती है , इसमें नियम का पालन करने से कोई नुकसान नहीं होता।

विधि – विधान आदि का ध्यान रखकर ही किसी भी कार्य को करना शुभ माना जाता है।

4. जादुई बांसुरी

राजा मानसिंह के राज्य में खुशहाली देखते ही बनती है , सभी लोग यहां खुशी खुशी रहते हैं और राजा के लिए आदर और सम्मान का भाव रखते हैं।  यहां के किसान खेती करके खुश रहते हैं और मजदूर अपनी मजदूरी करके। लोगों में जरा भी ईर्ष्या भाव नहीं है , सभी लोग आपस में मिलजुल कर भाईचारे और सौहार्द से रहते हैं। मानसिंह के राज्य में बहुत सारे सुंदर-सुंदर बागान है , जिसमें तरह-तरह के फूल – फल पूरे वर्ष मिलते हैं। इनके राज्य में एक अभयारण्य भी है , जिसमें ढेर सारे सुंदर-सुंदर पशु – पक्षी एक साथ रहते हैं।

मानसिंह बहुत ही धर्मात्मा व्यक्ति है , वह पूजा – पाठ में विशेष ध्यान रखते हैं।

इसके लिए उन्होंने सुंदर-सुंदर मंदिरों का निर्माण भी पूरे राज्य में करवाया उनके इस धार्मिक कार्यों से यहां की जनता अपने राजा को विशेष धन्यवाद करती है। राजा मानसिंह के यहां सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था , कि पिछले कुछ महीनों से लोगों में भय और असुरक्षा को लेकर काफी चिंता होने लगी। क्योंकि पूरे राज्य में खेती खराब हो रही थी , घर में समान सुरक्षित नहीं रह रहा था , और यहां तक कि खाने पीने की वस्तुएं भी ठीक प्रकार से नहीं रह पा रही थी।

पूरे राज्य में कुछ अदृश्य शक्तियां लोगों को परेशान कर रही थी , जिसके कारण यहां की जनता अब परेशान होकर राज्य को छोड़ने पर विवश हो रही थी।

राजा मानसिंह को यह चिंता सताने लगी कि यह यहां की जनता से राज्य आबाद है।

अगर यहां कोई नहीं रहेगा तो यह राज्य अस्तित्ववाद नहीं रहेगा इसका कोई वजूद नहीं रहेगा।

यह एक भुतहा खंडहर के अलावा और कुछ नहीं रहेगा।

इसलिए राजा मानसिंह प्रजा से अधिक परेशान थे , उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

राजा मानसिंह ने अपने पुरोहितों को बुलाकर राज्य में आ रहे संकटों से अवगत कराया और ज्योतिष शास्त्र का भी सहारा लिया।  काफी चिंतन मनन करने पर बात सामने आई पूरे राज्य में कुछ अदृश्य शक्तियां जागृत हुई है जिसके कारण यहां की जनता परेशान है। इस अदृश्य शक्तियों को राज्य से बाहर कर दिया जाए या उन्हें समाप्त कर दिया जाए तो फिर से राज्य में खुशहाली आ जाएगी। सभी पुरोहितों से विचार-विमर्श करके निर्णय लिया गया लिए आश्रम से सिद्ध तपस्वी को बुलाना पड़ेगा , उनके द्वारा ही यह संकट को टाला जा सकता है।

राजा ऋषि से सहायता मांगते है भुत को भगाने के लिए

वह स्वयं पैदल चल कर तपस्वी के आश्रम गए उन्हें दंडवत प्रणाम कर अपने राज्य में आ रही सभी विपत्तियों और संकट से अवगत कराया। तपस्वी ने तुरंत सभी परिस्थितियों को जानकर उनकी सहायता करने को तैयार हो गए। तपस्वी ने राजा को आश्वासन देकर उन्हें वापस अपने राज्य जाने को आदेश दिया और उन्होंने कहा , कल सुबह आकर मैं इन सभी अदृश्य शक्तियों को तुम्हारे राज्य से मुक्त करने में सहायता करूंगा।

राजा अपने राज्य आकर आश्वस्त थे कि तपस्वी ने उनकी सहायता के लिए वचन दिया है।

वह अवश्य इस संकट से हमारे राज्य को बाहर निकालेंगे।

सवेरा होते ही पूरे राज्य में एक मधुर ध्वनि का संसार हो रहा था , सभी लोग हैरान थे यह सोच रहे थे कि इतनी मधुर ध्वनि किस ओर से आ रही है जो इतनी आकर्षक और मनमोहक लग रही है। सभी लोग आश्चर्यचकित होकर इस ध्वनि के स्रोत को ढूंढ रहे थे। किंतु यह मधुर ध्वनि अदृश्य शक्तियों को अच्छी नहीं लग रही थी , वह इस मधुर ध्वनि से परेशान होकर इस ध्वनि के स्रोत के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर देखा एक तपस्वी बांसुरी से इस मधुर ध्वनि को बजा रहा है। उन अदृश्य शक्तियों ने तपस्वी को ऐसा करने से मना किया किंतु तपस्वी उनकी बातें अनसुनी कर निरंतर ध्वनि का संचार कर रहे थे।

धीरे – धीरे यह ध्वनि अदृश्य शक्तियों के शक्ति को छीण कर रही थी।

Ghost attacked to rishi

सभी अदृश्य शक्तियों ने एक साथ मिलकर तपस्वी पर हमला करने का सोचा किंतु कोई भी सफल नहीं हो पाया ,

क्योंकि वह तपस्वी सिद्ध पुरुष थे।

तपस्वी का अहित करना इन अदृश्य शक्तियों के वश में नहीं था ,

काफी मशक्कत के बाद सभी एक साथ मिलकर हाथ जोड़कर तपस्वी के सामने खड़े हो गए

और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए क्षमा याचना करने लगे।

तपस्वी ने उन्हें एक शर्त पर छोड़ने का वचन लिया कि वह भविष्य में किसी व्यक्ति को बेवजह परेशान नहीं करेंगे। सभी अदृश्य शक्तियों ने तपस्वी को एक स्वर में वचन दिया और राजा के राज्य से दूर चले गए। राजा मानसिंह ने पुनः तपस्वी को दंडवत प्रणाम कर उन्हें धन्यवाद दिया और वहां की जनता ने भी तपस्वी के तपस्या और उनके निस्वार्थ सेवा के लिए सराहना किया और उन्हें प्रणाम कर उनको कोटि-कोटि धन्यवाद दिया उनकी वजह से आज उनके प्राण संकट से बाहर हैं।

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